यह कमाल की ही बात है ना कि हम अपनी ज़िंदगी में क्या कुछ सोच कर नहीं रखते हैं- मैं बड़ा होकर यह करूँगा, मैं बड़ा होकर वह करूँगा, मैं इस शहर में रहूँगा, मेरे पास इतनी गाड़ियाँ होंगी, मेरा बंगला नदी के इस किनारे होगा, मैं इस जगह घूमने जाऊंगा और पता नहीं क्या क्या। शायद मनुष्य इतना सोचे बिना सिर्फ कर्म करने पर ध्यान दे तो नियति भी एक पल सोचने को मजबूर हो जायें। खैर, इन सब से परे विचित्र बात यह है कि इतना कुछ सोचने के बाद भी हम कभी मौत की कल्पना नहीं करते।

यह मौत शब्द भी बड़ा अनोखा है… हँसने वालों की हँसी छीन लेता है, रोने वालों को मौन कर देता है और शायद सभी को एक असीम शून्य एक अनंत गहराई का अनुभव करवाने में सक्षम होता है।

शायद हम मौत से डरते हैं या शायद हम यह मान कर चलते हैं कि जब आएगी तब देखा जाएगा। मैं तो यह मानता था कि मैं अमर हूँ पर जब मैंने अपनी आँखों से किसी अपने को ज़मीन पर बिल्कुल बेजान बिल्कुल स्थिर और पूर्ण रूप से खामोश पड़ा देखा उस क्षण मेरा जीवन के यथार्थ से सामना हो गया। रूह में नसों का संचार तेज़ हुआ, दुनिया एक मिनट के लिये मानो थम सी गयी और आँखों से अश्रु की धारा अनवरत बहने लगी। मुझे इस वास्तविकता को देर से ही सही पर अवश्य स्वीकार करना पड़ा। वो कहते हैं ना कि सत्य बहुत कड़वा होता है, मृत्यु भी एक सच है जिसका सामना एक ना एक दिन सभी प्राणी मात्र को अवश्य ही करना पड़ता है।

भगवान न करें पर यदि आपको कभी जीवन रूपी पथ के किसी मोड़ पर किसी कारणवश यह पता चले कि आप के पास धरती पर गुज़ारने के लिये केवल कुछ दिन या महीने शॆष हैं तो मेरी मानिए सभी व्यक्ति उस क्षण उस पल के लिये धरे के धरे रह जातें हैं। अब तक के जीवन के लिये प्रभु को धन्यवाद करने के बजाय हम उसी को कोसने लगते हैं। शायद बहुत लोग तो काल आने से पहले ही अन्य लोगों के लिये मर जाते हैं तो कुछ लोग जो अंत तक हार नहीं मानते मरते मरते दूसरों को जीना सीखा जाते हैं।

मौत की कल्पना करना अपने आप में एक साहस की बात हैं। सभी में यह प्रयास करने की हिम्मत नहीं होती। पर जब यह मुमकिन होता है तो मैं यही सोचता हूँ कि इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है कि हमारी आत्मा जिस महान शक्ति की एक छुद्र सा अंश है मृत्यु के पश्चात उसी में विलीन होने जा रही है।

यह शरीर तो मिट्टी के समान है- इसका आत्मा बिना क्या मोल। आश्चर्य की बात तो यह है कि हम सभी इस जीवन की द्वेषपूर्ण सच्चाई से अवगत है पर वक़्त आने पर हम इसका सामना नहीं कर पाते। अपने जीवन में हम इतने लोगों से मोह कर बैठते हैं, इतने जीवों को अपने इस तुच्छ जीवन का साथी बना लेते हैं कि किसी अपने की मृत्यु का गम हम सारांश नहीं कर पाते। उस वक़्त, ऐ दोस्त तुम यही याद करो कि तुम्हारे अपने की आत्मा उस ईश्वर से जा मिली है जिनके कारण हम सब जीवित हैं, जो संपूर्ण संसार पर अपना प्रकाश डाल कर सभी का मार्गदर्शन कर रहे हैं। मेरे अपने के जीने का मकसद कामयाब हो गया इस से बड़ी खुशी किसी के लिये क्या हो सकती है।

अपनी मौत के बारे में मैं यही सोचता हूँ कि क्या मैं इस समाज को अपने मृत शरीर पर रोने का कोई कारण दे पाऊँगा या नहीं … मेरे लिये कौन रोएगा? जिन लोगों को आज मैं अपना समझता हूँ क्या वे यह देख पायेंगे? कभी कभी तो मानो मौत के बाद जिस दुनिया में हम जायेंगे उसकी कल्पना किये बिना मेरा मन नहीं मानता । क्या अंत में हमें उस विराट स्वरूप के दर्शन हो पायेंगे? धरती पर जो लोग हमारा साथ छोड़ चले गये थे क्या वे लोग मुझे वहां मिलेंगे? क्या मेरा दूसरा जन्म निश्चित ही होगा? मौत के लिये मैंने अपने आप को इतना बेताब इतना बेचैन पहले कभी ना देखा था।

अगर सिर्फ कल्पना मात्र से इतने स्वर, इतनी अटकले जागृत हो रही हैं तो ज़रा सोचिये जब वास्तविकता में यह हो रहा होगा तब क्या बीतेगी?

मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक “आनंद” में राजेश खन्ना का यह संवाद इस मौके एकदम सटीक बैठता है-

“ज़िंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहाँपनाह… उसे न तो आप बदल सकते हैं न मैं।हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं जिनकी डोर ऊपर वाले के हाथ में बंधी है। कब कौन कैसे उठेगा यह कोई नहीं बता सकता ।”

मृत्यु  की  कल्पना  करते  हुए  मेरे रूह में यह ख्याल भी आ जाता है जब हम अपने इतिहास को कुरेद कर अपने बीते दिनों की बातें याद कर खुद अफ़सोस ज़ाहिर करते हैं कि काश मैने वहां उस पल अपने दिल की बात सुनी होती तो शायद आज मेरी ज़िंदगी कुछ और होती, काश मैं उसे कह पता कि मैं उसकी कितनी कद्र करता था कि आज वह मेरे पास होती।

क्‍यूं ना हम आज यह प्रण लें कि हम वही करेंगे जो हमारे हृदय कहता है, क्यूं ना इस क्षण से हम अपने लिये जीये? क्यूं ना इस पल हम दूसरों की गलती ढूंढने से पहले अपनी नादानी पर गौर करें? क्यूं ना हम अपने बीतें दिनों से सबक लेकर अपने आज का सुधार करें? जो बात मौत आने पर याद आती है क्यूं ना उन सब बातों पर हम आज से ही अमल करें?

आदमी की मृत्यु उस क्षण ही तय हो जाती जिस दिन वह जन्म लेता है। फिर भी इस जीवन रूपी कुए में हम सांसारिक बंधन बनाते हुए, अनेक सुख एवं दुखों को जीते हुए अपना जीवन व्यतीत करते हैं। अगर इसमे चुनौतियां ही नहीं हों ,अगर इसका लक्ष्य ही नहीं तो जीवन जीने का मज़ा क्या है?

अंत में, अपनी कलम को लगाम देते हुए, मुझे यही कहने को जी चाहता है-

“होनी को कौन टाल सकता है,
जो होना है वह तो हो कर ही रहेगा।
माना हम में हिम्मत होनी चाहिये अपना भाग्य स्वयं लिखने की
पर जो तुम्हारे माथे पर लिखा है उसे कौन विकार सकता है!
जीवन एक फल है, मृत्यु एक सत्य है,
तुम इसकी चिंता किये बिना अपना कर्म करते चलो,
जब मौत आयेगी तब देखा जायेगा,
यही सोच कर अपने पथ पर अग्रसर बढ़ते चलो!”

Krishna Rathi